Semester 2 Environmental Management and Sustainable Development Syllabus, Notes and Important Questions in Hindi (PDF) - Study Friend

Semester 2 Environmental Management and Sustainable Development Syllabus, Notes and Important Questions in Hindi (PDF)

आज के इस पोस्ट में हमने सेमेस्टर 2 के एक महत्वपूर्ण सब्जेक्ट Environmental Management and Sustainable Development का सिलेबस, नोट्स देखेंगे...

 

Subject: Environmental Management and Sustainable Development
Semester: UG Sem 2
Notes Language: Hindi
Semester 2 Environmental Management and Sustainable Development Syllabus, Notes and Important Questions in Hindi (PDF)
Sem 2 Environmental Management and Sustainable Development Syllabus, Notes and Important Questions in Hindi

Semester 2 Environmental Management and Sustainable Development Syllabus in Hindi

इकाई 1: पर्यावरण (Environment):
  1. अवधारणाएँ और प्रकार (Concepts and Types)
  2. पर्यावरण संवेदन (Environmental Perception)
  3. पर्यावरण और समाज (Environment and Society)
इकाई 2: पर्यावरण समस्याओं के प्रकार (Types of environmental problems):
  1. प्रदूषण (Pollution)
  2. ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming)
  3. अम्ल वर्षा (Acid Rain)
  4. ओजोन परत की कमी (Ozone Layer Depletion)
  5. पर्यावरण समस्याओं के कारण और परिणाम वैश्विक, क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर (Causes and consequences of environmental problems at global, regional and local levels)
  6. वैश्विक पर्यावरण परिवर्तन (Global environmental change)
  7. प्राकृतिक आपदाएं (Natural Disasters)
  8. पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (पीआईए) (Environmental Impact Assessment (EIA))
इकाई 3: सतत विकास की अवधारणा (Concepts of Sustainable Development):
  1. सतत विकास की आवश्यकता (Need of Sustainable Development)
  2. पर्यावरण योजना एवं सतत विकास (Environmental Planning & Sustainable Development)
  3. सतत पर्वतीय विकास (Sustainable Mountain Development)
इकाई 4: पर्यावरण प्रबंधन की अवधारणा (Concept of Environmental Management)
  1. पर्यावरण प्रबंधन के उपाय (Approaches to Environmental Management)
  2. एकीकृत जल विभाजन प्रबंधन (Integrated Watershed Management)
  3. आपदा प्रबंधन (Disaster Management)
  4. जलवायु परिवर्तन और अनुकूलन (Climate Change and Adaptation)

Environmental Management and Sustainable Development Notes in Hindi

इकाई 1: पर्यावरण (Environment):

1. अवधारणाएँ और प्रकार (Concepts and Types)

अवधारणायें:
पर्यावरण का सामान्य अर्थ होता है - हमारे आस-पास की चीजें जो हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं।

विज्ञान की दृष्टि से पर्यावरण का अर्थ उन सभी प्राकृतिक या अप्राकृतिक तत्वों से जो जीवों के जीवन और प्राकृतिक प्रणाली को प्रभावित करते हैं।

पर्यावरण में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु, पंछी, और पेड़-पौधे आते हैं, और इसके अलावे उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएं भी पर्यावरण में निहित हैं।

पर्यावरण के प्रकार:
(i) प्राकृतिक पर्यावरण:- इस पर्यावरण के अंतर्गत सभी प्राकृतिक जैविक और अजैविक तत्व शामिल होते हैं, जिसमें मनुष्यों का को कोई हस्तक्षेप नहीं होता हैं। प्राकृतिक पर्यावरण को दो भागों में बांटा जा सकता हैं: जैविक और अजैविक। जैविक जिसमें सूक्ष्म जीव, जीव-जंतु, पेड़-पौधें आदि शामिल है। वही अजैविक पर्यावरण में जल, मिट्टी, खनिज, गैस, आदि शामिल हैं।

(ii) मानव निर्मित पर्यावरण:- इस पर्यावरण में वे सारी चीजें आती हैं जिन्हें मानव ने निर्मित किया हैं। जैसे - घर, सड़क, पुल, शहर, जहाज, अन्तरिक्ष स्टेशन, आदि।

(iii) सामाजिक पर्यावरण:- सामाजिक पर्यावरण में मानव द्वारा निर्मित सांस्कृतिक मूल्यों एवं समाज को शामिल किया जाता है। इसमें भाषा, धार्मिक रीति-रिवाज, जीवन-शैली आदि सम्मिलित है।

2. पर्यावरण संवेदन (Environmental Perception)

पर्यावरण संवेदन वह तत्व या धारणा है जो हमारे समाज में पर्यावरण के महत्त्व और प्रभाव को समझने के प्रति प्रेरित करता है।
  
यह हमारे विभिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक प्रणालियों के द्वारा पर्यावरण के प्रति हमारी धारणाओं, अनुभवों और विश्लेषणों को व्यक्त करता है।

इसे सामाजिक जागरूकता (social awareness) का भी एक रूप माना जा सकता है, जो हमें पर्यावरण के संबंध में जागरूक करता है और हमें पर्यावरण के प्रति सही कदम लेने के लिए उत्साहित करता है।

इस प्रकार का संवेदन (धारणा) समाज में पर्यावरण संरक्षण के लिए आवश्यक माना जाता है, क्योंकि यह हमें विभिन्न प्रकार के पर्यावरण संकटों और समस्याओं को समझने और उनका समाधान ढूंढने के लिए प्रेरित करता है।

3. पर्यावरण और समाज (Environment and Society)

पर्यावरण और समाज का संबंध एक बहुत महत्वपूर्ण और गहरा संबंध है जो हमारे सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक जीवन को प्रभावित करता है।

समाज के विकास करने के साथ पर्यावरण संरक्षण का ध्यान रखना आवश्यक है। एक अनुकूल और संतुलित समाज और पर्यावरण तभी संभव है जब लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक रहेंगे।

समाज के उत्थान और विकास में पर्यावरण का योगदान बहुत जरुरी है। विकास की प्रक्रिया में अगर पर्यावरण के संरक्षण को ध्यान में नहीं रखा जाए, तो इससे पर्यावरणीय समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

व्यक्तिगत स्तर पर, समाज के लोगों की जागरूकता और सहयोग आवश्यक है ताकि पर्यावरण के प्रति जागरूकता और समर्थन मिल सके।

साथ ही, समाज में पर्यावरण संरक्षण के लिए कानूनी, नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का समर्थन भी जरूरी है ताकि हम स्थायी और समृद्ध समाज का निर्माण कर सकें।

इकाई 2: पर्यावरण समस्याओं के प्रकार (Types of environmental problems):

1. प्रदूषण (Pollution)

प्रदूषण एक बहुत बड़ी पर्यावरण समस्या है जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को प्रभावित करती है। इससे वायु, जल, भूमि और जैव पर्यावरण के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक विकास को भी प्रभावित होता है।

1. वायु प्रदूषण: वायु में अलग-अलग प्रकार के धूल, धुआं, हानिकारक गैसों आदि के मिलने से वायु प्रदूषण होता है। वायु प्रदूषण से वायुमंडल की गुणवत्ता कम होती है, जिससे अस्थमा, एलर्जी, और अन्य श्वसन संबंधी रोग हो सकते हैं। और आपको पता ही होगा कि ऑक्सीजन गैस के बिना जीवन संभव नहीं हैं।

2. जल प्रदूषण: जल प्रदूषण जल के स्रोतों में विभिन्न प्रकार के हानिकारक और अन्य कृत्रिम रसायनों के मिलने से जल प्रदूषित होते हैं, जो जल संसाधनों को बुरी तरीके से प्रभावित करते हैं और पीने योग्य जल की उपलब्धता में कमी का कारण बनते हैं।

3. भूमि प्रदूषण: भूमि प्रदूषण का मुख्य कारण विभिन्न औद्योगिक और गैर-औद्योगिक गतिविधियों, खनन, और अन्य विस्फोटों के तत्व होते हैं जो भूमि की गुणवत्ता को कम करते हैं और जल स्रोतों को प्रभावित करते हैं। प्रदूषित भूमि पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के लिए अनुकूल नहीं रह जाते हैं, जो एक बहुत बड़ी समस्या बन जाती है।

प्रदूषण समस्याएं सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से प्रभावित करती हैं और इसका समाधान आवश्यक है ताकि जीवन के लिए अनुकूल और सुरक्षित पर्यावरण रह सके।

2. ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming)

ग्लोबल वार्मिंग एक प्रकार की पर्यावरणीय समस्या है जो मुख्य रूप से उन गतिविधियों के कारण होती हैं जिनमें अधिक उत्सर्जन के कारण ग्रीनहाउस गैसों की उत्पत्ति होती है। इन गैसों में उत्सर्जन कार्बन डाई आक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, वाष्प, ओजोन शामिल हैं।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारणों में जलवायु परिवर्तन, उदाहरण के लिए उद्योगों और वाहनों से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ना, और वनों की कटाई जैसे कृत्रिम गतिविधियाँ शामिल हैं, जो ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को बढ़ाती हैं।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण कई हानिकारक जलवायु परिवर्तन होते हैं, जैसे कि अधिक तापमान, बर्फ के पिघलना, समय पर बारिश न होना, जलवायु आपातकालीन परिस्थितियों का बढ़ना और समुद्रों में उच्च स्तर की बढ़ोतरी।

ग्लोबल वार्मिंग का समाधान हमें पर्यावरण के प्रति सजगता और उसके संरक्षण के लिए कदम बढ़ाने की आवश्यकता है। विभिन्न उपायों को अपनाकर ऊर्जा बचाव, परिवहन के विकल्प, और वन्यजीव संरक्षण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

3. अम्ल वर्षा (Acid Rain)

अम्ल वर्षा एक पर्यावरण समस्या है जो वायुमंडलीय गैसों के अम्लीकरण के कारण होती है।

इस वर्षा जल बूँदों में सल्फरिक और नाइट्रिक अम्लों का मिश्रण होता है, जो वायुमंडलीय प्रदूषण के कारण उत्सर्जित होते हैं।

अम्ल वर्षा जल, जलस्रोतों, भूमि, वनस्पति और जलवायु को प्रभावित करता है, जिससे जीवन के लिए आवश्यक जल में कमी होता है।

इसके कारण, जल जीवन, पेड़-पौधे, और जन्तुओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जैसे कि जल और मिट्टी में अम्ल वर्षा के कारण पौधों के मरने या जलीय जीवन के संख्या में कमी।

अम्ल वर्षा के नियंत्रण के लिए प्रदूषण को कम करना महत्वपूर्ण है, जैसे कि उच्च प्रदूषण उत्सर्जन और प्रदूषण से होने वाली उत्सर्जन की रोकथाम। इसके अलावा, सड़कों पर वाहनों द्वारा प्रदूषण को कम करने, ऊर्जा उत्पादन के लिए कम हानिकारक ऊर्जा का उपयोग, और जल संरक्षण के उपाय अम्ल वर्षा को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।

4. ओजोन परत का क्षय (Ozone Layer Depletion)

ओजोन परत का क्षय एक गंभीर पर्यावरण समस्या है जो वायुमंडल में ओजोन की परत में छेद करता है और यह हानिकारक प्रभाव डालता है।

ओजोन परत धरती की ऊपरी वायुमंडल में पाई जाती है, जो हाई-एनर्जी यूवी (UV) रेडिएशन को रोकती है और जीवों को नुकसान होने से बचाती है।

जीवन की रक्षा के लिए ओजोन परत का होना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हाई-एनर्जी UV रेडिएशन से बचाती है जो कैंसर और त्वचा के अन्य रोगों का कारण बन सकता है।

ओजोन परत के क्षय का प्रमुख कारण अलग-अलग प्रकार के हानिकारक गैसें और गतिविधियाँ हैं जैसे कि क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) और नाइट्रस ऑक्साइड्स का उत्सर्जन।

ओजोन परत की कमी के प्रभाव में कृत्रिम गर्मी का वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, और जीवन के लिए खतरनाक रोगों का प्राकृतिक तापमान में वृद्धि शामिल हैं।

ओजोन परत के क्षय के प्रभाव से तापमान में वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, खतरनाक रोग, आदि हो सकते हैं।

ओजोन परत के क्षय को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और नियंत्रण योजनाओं को अपनाना महत्वपूर्ण है, जिनमें विभिन्न उद्योगों में CFCs के उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रतिबंध लगाने और प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग करने के उपाय शामिल हैं।

5. वैश्विक, क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर पर्यावरण समस्याओं के कारण और परिणाम (Causes and consequences of environmental problems at global, regional and local levels)

1. वैश्विक स्तर पर:
कारण:
अधिकांश पर्यावरण समस्याएं अत्यधिक उद्योगीकरण, जलवायु परिवर्तन, और वाहनों द्वारा गैसों के उत्सर्जन के कारण होती हैं।

विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय स्तरीय योजनाओं और अनुबंधों की कमजोरी भी इन समस्याओं को बढ़ावा देती है।

परिणाम:

वैश्विक तापमान में वृद्धि, जल स्तर की बढ़ोतरी, और जलवायु आपातकाल की वृद्धि जैसे गंभीर समस्याएँ उत्पन्न होते हैं।

जीवन के लिए खतरनाक जलवायु परिवर्तन, और जल संसाधनों में खतरा हो सकता है।

2. क्षेत्रीय स्तर पर:
कारण:

शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, और अत्यधिक संसाधनों का उपभोग राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरणीय समस्याओं के कारण होते हैं।

परिणाम:

अत्यधिक उपभोग से संसाधनों में निम्नता, जल प्रदूषण, और भूमि की असमता जैसे परिणाम होते हैं।

क्षेत्रीय स्तर पर जीवन के लिए नकारात्मक प्रभाव, स्थानीय जीव-जंतुओं की हानि, और प्राकृतिक संतुलन की हानि हो सकती है।

3. स्थानीय स्तर पर:
कारण:

स्थानीय स्तर पर प्रदूषण, अत्यधिक जल उपयोग, और अत्यधिक वनस्पति कटाई जैसे कारण हो सकते हैं।

अनुचित उपयोग और अवैध विकास भी स्थानीय स्तर पर पर्यावरण समस्याओं का कारण बन सकते हैं।

परिणाम:

स्थानीय स्तर पर वनस्पति और जलस्रोतों की हानि, स्थानीय प्रजातियों के लिए संकट, और स्थानीय आर्थिक विकास के लिए नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं।

6. वैश्विक पर्यावरण परिवर्तन (Global environmental change)

वैश्विक पर्यावरण परिवर्तन एक व्यापक प्रकार की पर्यावरण समस्या है जो पृथ्वी के प्रकृति को प्रभावित करती है।

इसमें जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा, ग्लेसिअर का पिघलना, और जल स्तर में बढ़ोतरी जैसे समस्याएं शामिल होते हैं।

वैश्विक पर्यावरण परिवर्तन के मुख्य कारणों में उद्योगीकरण, अत्यधिक जल और ऊर्जा उपयोग, और वनों की कटाई शामिल हैं।

इसके कारण अलग-अलग भूभागों में आपातकालीन परिस्थितियों की वृद्धि, अनुकूल जीवन के लिए जलवायु में कमी, और प्राकृतिक संतुलन में बदलाव होता है।

इस समस्या का समाधान केवल वैश्विक स्तर पर ही नहीं, बल्कि समूचे मानव समुदाय की साझेदारी और प्रयासों के माध्यम से किया जा सकता है।

7. प्राकृतिक आपदाएं (Natural Disasters)

प्राकृतिक आपदाएं वे घटनाएं होती हैं जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं के कारण होती हैं। जैसे कि भूकंप, बाढ़, तूफान और भूस्खलन।

इन आपदाओं के कारण बारिश की मात्रा में वृद्धि, भूमिकम्पन, ज्वालामुखी विस्फोट, और पेयजल में कमी जैसे समस्याओं का उत्पन्न होना शामिल है।

प्राकृतिक आपदाएं आमतौर पर अज्ञात समय में आती हैं और इनके प्रभाव अत्यंत खतरनाक हो सकते हैं।

इन आपदाओं के कारण जीवन की हानि, संपत्ति का नुकसान, और अत्यधिक आर्थिक बोझ हो सकता है।

आपदा प्रबंधन जैसी योजनाएं इन आपदाओं के प्रभावों को कम करने में मदद कर सकती हैं। उचित नियोजन और अनुसंधान, समुदायों में जागरूकता उपाय हो सकते हैं।

8. पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (इआईए) (Environmental Impact Assessment (EIA))

पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (इआईए) एक प्रक्रिया है जो किसी नई परियोजना, नीति, या कार्यक्रम के प्राकृतिक और सामाजिक परिणामों को मूल्यांकन करती है।

इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरणीय प्रभावों को पहचानना, मापना, और प्रबंधन करना है ताकि निरंतर विकास के लिए को प्राकृतिक आपदाओं को प्रबंधित किया जा सके।

इआईए प्रक्रिया में प्रारंभिक मूल्यांकन, विकल्पों का विश्लेषण, प्रभाव का मूल्यांकन आदि शामिल होते हैं।

इस प्रक्रिया में समुदायों, स्थानीय संगठनों, और संबंधित स्थानीय अधिकारियों को समावेश किया जाता है ताकि उनकी राय और सामाजिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जा सके।

इस प्रक्रिया के माध्यम से लोगों को सबल और स्थायी विकास के लिए आवश्यक नीतियों का विश्लेषण करना होता है।

इआईए के उपयोग से पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान खोजने और स्थानीय सहयोग प्राप्त करने में मदद मिलती है।

इकाई 3: सतत विकास की अवधारणा (Concepts of Sustainable Development):

1. सतत विकास की आवश्यकता (Need of Sustainable Development)

सतत विकास का अर्थ है ऐसा विकास जो वर्तमान की जरूरतों को इसप्रकार पूरा करें, कि आने वाले पीढ़ियों के लिए संसाधन संभव हो। यह पर्यावरण पर मानव द्वारा हानिकारक प्रभावों को मिनिमाइज़ का प्रयास करता है।

सतत विकास का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था, सामाज, और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखना है।

इसकी आवश्यकता इसलिए है क्योंकि वर्तमान में किये जाने वाले तरीके और संसधानों का अंधाधुंध उपयोग आने वाले पीढ़ियों के लिए ठीक नहीं हैं।

वर्तमान विकास मॉडल में कई खामियां हैं, जिनमें बिना योजना के उपयोग की अधिकता, प्रदूषण, और प्राकृतिक संसाधनों की अत्यधिक उपयोग शामिल है।

2. पर्यावरण योजना एवं सतत विकास (Environmental Planning & Sustainable Development)

पर्यावरण योजना एवं सतत विकास एक प्रक्रिया है जो विकास के लिए योजनाएं बनाती है जो पर्यावरण के संरक्षण को ध्यान में रखती है।

इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और विकास, दोनों की आवश्यकताओं को समझना, ताकि सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय लाभ एक साथ हासिल हो सके।

पर्यावरण योजना एवं सतत विकास में वैसी योजनाएं बनाई जाती हैं जो विकास और समृद्धि के लिए उठाये गये कदम, पर्यावरण के साथ संगठित किए जा सकते हैं।

इस प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों, सरकारी विभागों, और गैर-सरकारी संगठनों का भागीदारी होती है, ताकि सफल सामाजिक योजनाएं बनाये जा सके।

पर्यावरण योजना एवं सतत विकास के लिए विभिन्न प्रकार की नीतियां और कार्यक्रम का प्रोत्साहन किया जाता है जो लोकल और ग्लोबल स्तर पर पर्यावरण के साथ संतुलन बनाए रखते हैं।

इस प्रकार की योजनाएं स्थायी, और सामाजिक रूप से सही होने के साथ-साथ पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में मदद करती हैं ताकि आने वाली पीढ़ियों को स्थायी और गुणवत्ता से विकसित दुनिया मिल सके।

3. सतत पर्वतीय विकास (Sustainable Mountain Development)

सतत पर्वतीय विकास का मतलब है पर्वतीय क्षेत्रों के विकास में आर्थिक, सामाजिक, और पर्यावरण के संतुलन का ध्यान रखना।

पर्वतीय क्षेत्रों का विकास ऐसे तरीकों से किया जाना चाहिए जो उनके प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित रखें और स्थायी और समृद्ध विकास को बढ़ावा दें।

पर्वतीय क्षेत्रों का विकास महत्वपूर्ण है क्योंकि ये जल, ऊर्जा, और जलवायु संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

सतत पर्वतीय विकास के लिए विशेष ध्यान दिया जाता है पर्वतीय क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों, जल संरचनाओं, और स्थानीय समुदायों की जरूरतों को समझकर।

इसके लिए सही प्रबंधन, ऊर्जा का समृद्ध उपयोग, वाणिज्यिक गतिविधियों का समर्थन, और स्थानीय सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के उपाय अपनाए जाते हैं।

सतत पर्वतीय विकास के माध्यम से, पर्वतीय क्षेत्रों के जीवन की सुरक्षा, और विकास के लक्ष्यों को पूरा करने का प्रयास किया जाता है।

इकाई 4: पर्यावरण प्रबंधन की अवधारणा (Concept of Environmental Management)

1. पर्यावरण प्रबंधन के उपाय (Approaches to Environmental Management)

पर्यावरण प्रबंधन के उपाय विभिन्न परिस्थितियों और संदर्भों के आधार पर विविध होते हैं। इन्हें निम्नलिखित रूपों में बांटा जा सकता है:

व्यावसायिक प्रबंधन (Business Management): इस उपाय में कारगर उपायों का उपयोग किया जाता है जैसे कि प्रौद्योगिकी, विपणन, और वित्तीय प्रबंधन।

शासन प्रबंधन (Governance Management): इसमें सरकारी नियम, नीतियों का अनुसरण, और कानूनी प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है।

सामुदायिक प्रबंधन (Community Management): सामुदायिक संरचनाओं, स्थानीय संस्थाओं, और स्थानीय अधिकारियों के सहयोग द्वारा पर्यावरणीय मुद्दों का संबोधन किया जाता है।

संघर्षणात्मक प्रबंधन (Conflict Management): इस उपाय में विभिन्न हितशील समूहों और पर्यावरण संरक्षण के सिद्धांतों के बीच संघर्षों का संवाहन किया जाता है।

प्रौद्योगिकीय प्रबंधन (Technological Management): उन्नत प्रौद्योगिकी, उपकरण, और तकनीकी समाधानों का उपयोग करके पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान किया जाता है।

पर्यावरण प्रबंधन के उपायों का उद्देश्य पर्यावरण की संरक्षण, संरचना, और उन्नति के साथ-साथ समाज की सामूहिक और व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करना होता है।

2. एकीकृत जल विभाजन प्रबंधन (Integrated Watershed Management)

एकीकृत जल विभाजन प्रबंधन (आईडब्ल्यूएम) एक दृष्टिकोण है जो जल, मिट्टी, वनस्पति और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का एकीकृत तरीके से प्रबंधन करता है। इसका उद्देश्य जलग्रहण क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और विकास करना, भूमि क्षय को रोकना, और स्थानीय समुदायों की आजीविका में सुधार करना है।

उद्देश्य:
  • प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और विकास
  • भूमि क्षय को रोकना
  • बाढ़ और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं का समाधान
  • जल संसाधनों की उपलब्धता में वृद्धि
  • स्थानीय समुदायों की आजीविका में सुधार
प्रमुख घटक:
  • भूमि और जल संरक्षण: जल की कमी वाले क्षेत्र में भूमि क्षय को रोकने और जल संसाधनों की उपलब्धता में वृद्धि करने के लिए उपाय करना।
  • वनरोपण: कई क्षेत्र में वन क्षेत्र में वृद्धि करना।
  • कृषि और पशुपालन: स्थायी कृषि और पशुपालन पद्धतियों को अपनाना।
  • जल संसाधन प्रबंधन: जल संसाधनों का कुशल और टिकाऊ उपयोग करना।
  • सामाजिक और आर्थिक विकास: स्थानीय समुदायों की आजीविका में सुधार के लिए उपाय करना।

3. आपदा प्रबंधन (Disaster Management)

आपदा प्रबंधन आपदाओं से पहले, दौरान और बाद में किए जाने वाले कार्यों का समूह है। इसका उद्देश्य आपदाओं के प्रभाव को कम करना, जानमाल की सुरक्षा, और प्रभावित लोगों की सहायता करना है।

आपदा के प्रकार:
  1. प्राकृतिक आपदाएं: बाढ़, भूकंप, सुनामी, चक्रवात, ज्वालामुखी विस्फोट, आदि।
  2. मानव निर्मित आपदाएं: औद्योगिक दुर्घटनाएं, आतंकवादी हमले, आदि।
आपदा प्रबंधन के चरण:
1. तैयारी:
  • आपदाओं की संभावना का आकलन करना।
  • आपातकालीन योजना बनाना।
  • आपातकालीन उपकरण और आपूर्ति का भंडारण करना।
  • लोगों को आपदाओं के बारे में जागरूक करना।
2. प्रतिक्रिया:
  • आपदा के दौरान लोगों को बचाना और राहत प्रदान करना।
  • आपदा से हुए नुकसान का आकलन करना।
  • प्रभावित लोगों को पुनर्वास प्रदान करना।
3. पुनर्प्राप्ति:
  • आपदा से हुए नुकसान की मरम्मत करना।
  • प्रभावित लोगों को अपनी सामान्य जीवन जीने में मदद करना।
  • भविष्य में आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए उपाय करना।
आपदा प्रबंधन में शामिल संस्थाएं:
  1. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण: भारत सरकार की शीर्ष आपदा प्रबंधन एजेंसी।
  2. राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल: आपदा के दौरान लोगों को बचाने और राहत प्रदान करने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित बल।
  3. राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण: राज्य सरकारों की आपदा प्रबंधन एजेंसियां।
  4. जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण: जिला प्रशासन की आपदा प्रबंधन एजेंसियां।

4. जलवायु परिवर्तन और अनुकूलन (Climate Change and Adaptation)

जलवायु परिवर्तन पृथ्वी की जलवायु में दीर्घकालिक परिवर्तन है। यह तापमान, वर्षा, समुद्र का स्तर और अन्य जलवायु पैटर्न में बदलाव लाता है। जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारणों से होता है।

मानवीय गतिविधियाँ जो जलवायु परिवर्तन में योगदान करती हैं:
  • जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस) का जलना
  • वनों की कटाई
  • कृषि
  • औद्योगिक उत्सर्जन
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव:
  • समुद्र का स्तर बढ़ना
  • अधिक चरम मौसम की घटनाएं (जैसे बाढ़, सूखा, तूफान)
  • जैव विविधता का ह्रास
  • खाद्य सुरक्षा में कमी
  • स्वास्थ्य समस्याएं
  • आर्थिक और सामाजिक नुकसान
जलवायु परिवर्तन अनुकूलन:

जलवायु परिवर्तन अनुकूलन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने के लिए किए गए उपायों का समूह है। इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना और लोगों और समुदायों को अधिक लचीला बनाना है।

Environmental Management and Sustainable Development Important Questions in Hindi

  1. पर्यावरण क्या है? इसके प्रकारों का वर्णन करें।
  2. पर्यावरण संवेदन क्यों महत्वपूर्ण है? और कैसे हम इसे बढ़ा सकते हैं?
  3. पर्यावरण और समाज कैसे एक-दूसरे से सम्बंधित होते हैं?
  4. प्रदूषण के प्रमुख कारण क्या हैं? और इसके कौन-कौन से प्रकार होते हैं?
  5. ग्लोबल वार्मिंग क्या है? और इसके प्रभाव को लिखें।
  6. अम्ल वर्षा और ओजोन परत का क्षय कैसे होता है? और इसके प्रभाव क्या हैं?
  7. सतत विकास की आवश्यकता क्यों है? और इसके क्या-क्या उपाय हैं?
  8. पर्यावरण योजना और सतत विकास क्यों महत्वपूर्ण हैं? इनके विभिन्न उपाय क्या हैं?
  9. सतत पर्वतीय विकास क्या है? और यह क्यों महत्वपूर्ण है?
  10. पर्यावरण प्रबंधन के उपाय में क्या-क्या शामिल होता है? और इनका महत्व क्या है?
  11. एकीकृत जल विभाजन प्रबंधन क्या है? और उसके क्या-क्या लाभ हैं?
  12. आपदा प्रबंधन क्यों महत्वपूर्ण है? और किन-किन तकनीकों का उपयोग इसमें किया जाता है?
  13. जलवायु परिवर्तन क्या है? और इसके द्वारा होने वाले सामाजिक और पर्यावरण प्रभावों का सामना कैसे कर सकते हैं?

Environmental Management and Sustainable Development Notes in Hindi (PDF)

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निष्कर्ष

आज के इस पोस्ट में हमने सेमेस्टर 2 के एक महत्वपूर्ण सब्जेक्ट "Environmental Management and Sustainable Development" का सिलेबस, नोट्स और इम्पोर्टेन्ट सवाल देखा। आशा करते है कि यह पोस्ट आपको पसंद आया। इसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करें।

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