संधि और उसके भेद हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण विषय है इसके बिना शब्दों को समझना मुश्किल है। आज के इस पोस्ट में हमलोग संधि क्या है इसके भेद और 100+ उदाहरण देखेंगे।
संधि (Sandhi) क्या है?
संधि की परिभाषा:-
दो वर्णों के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे संधि कहते है। या दुसरे शब्दों में कहे तो:- जब दो शब्द या दो अक्षर आपस में मिलकर एक नया रूप धारण करते है, उसे संधि कहते है।
उदाहरण :-
- रमा + ईश = रमेश (यहा "रमा" और "ईश " दो शब्द है जो मिलकर रमेश बने है।)
- सुर + ईश = सुरेश
संधि के प्रकार (संधि के भेद और सामान्य नियम)
संधि के तीन प्रकार है:-
- स्वर संधि
- व्यंजन संधि
- विसर्ग संधि
1. स्वर संधि
परिभाषा - दो स्वरों के मेल से उत्पन्न विकार अथवा रूप -परिवर्तन को स्वर संधि कहते है।
उदाहरण:- राजा + इंद्र = राजेंद्र
विधा + आलय = विद्यालय
स्वर संधि के प्रकार :-
स्वर संधि के मुख्यतः पाच प्रकार है।
(i) दीर्घ संधि - दो समान स्वरो ( अ + अ , इ + इ ) के मिलने से दीर्घ स्वर बनता है। जैसे-
- रमा + आनद = रमानन्द
- मही + ईश = महीश
- सुधा + आलय = सुधालय
- नदी + ईश = नदीश
- गिरी + इंद्रा = गिरीन्द्र
(ii) गुण संधि - यदि 'अ ' या 'आ' के बाद इ- ई, उ- ऊ, आये तो दोनों मिलकर क्रमशः ' ए', 'ओ' और 'अर' हो जाते है। जैसे -
- अ + इ = ए ⟹ देव + इंद्र = देवेन्द्र
- अ + ई = ए ⟹ देव + ईश = देवेश
- आ + ई = ए ⟹ महा + ईश = महेश
- अ + उ =ओ ⟹ चन्द्र + उदय = चंद्रोदय
- अ + ऋ = अर ⟹ देव + ऋषि = देवर्षि
(iii) वृद्धि संधि - यदि अ, आ + ए, ऐ = 'ऐ ' तथा, अ, आ + ओ , औ = औ हो जाता है, उसे वृद्धि संधि कहते है। जैसे -
- अ + ए = ऐ ⟹ एक + एक = एकेक
- आ + ए = ऐ ⟹ सदा + एव = सदैव
- अ + ओ = औ ⟹ वन + औषधि = वनौषधि
- आ + औ = औ ⟹ महा + औषधि = महोषध
(iv) यण् संधि - यदि इ-ई , उ-ऊ के बाद कोए भिन्न स्वर आये तो इ-ई का 'य' तथा उ-ऊ का 'व' हो जाता है, उसे यण् संधि कहते है। जैसे -
- इ + आ = या ⟹ अति + आवश्यक = अत्यावश्यक
- इ + अ = य ⟹ यदि + अपि = यधपि
- इ + उ = यु ⟹ अति + उतम = अत्युतम
- उ + अ = व ⟹ अनु + अय = अन्वय
(v) अयादि संधि - यदि ए , ऐ, ओ , औ , के बाद कोए भिन्न स्वर आये तो ए का 'अय' , ऐ का 'आय' , ओ का 'अव' और औ का 'आव' हो जाता है।
जैसे -
- ने + अन = नयन
- पो + अन = पवन
- चे + अन = चयन
- पौ + अन = पावन
- नै + अक = नायक
- पौ + अक = पावक
- गे + अक = गायक
2. व्यंजन संधि
परिभाषा - जब व्यंजन के साथ स्वर या कोई और व्यंजन के मिलने से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे व्यंजन संधि कहते है। उदाहरण -
- शब्द + रूप = शब्दरूप
- अभी + षेख = अभिषेख
- उत् + लास = उल्लास
- जगत् + ईश = जगदीश
- तत् + अनुसार = तदनुसार
इसके कुछ नियम इस प्रकार है -
1. यदि (क्, च् ,ट् ,त् ,और प्) के बाद किसी तृतीय, चतुर्थ वर्ण आए, या (य्, र्, ल्, व्) या कोई स्वर आए, तो (क्, च् , ट् , त्, प्) के स्थान पर क्रमशः उसी वर्ग का तृतीय व्यंजन हो जाता है। जैसे –
- दिक् + अम्बर = दिगम्बर
- दिक् + भ्रम = दिग्भ्रम
- षट् + दर्शन = षड्दर्शन
2. यदि (क्, च्, ट्, त्, प्) के बाद 'म्' या 'न्' आए तो (क्, च्, ट्, त्, प्) अपने वर्ग के पंचम वर्ण में बदल जाता है।
जैसे –
- वाक् + मय = वाड्मय
- जगत् + नाथ = जगन्नाथ
- उत् + नति = उन्नति
3. यदि 'म्' के बाद कोई व्यंजन वर्ण आए तो 'म्' का अनुस्वार हो जाता है या वह बाद वाले वर्ग के पंचम वर्ण में भी बदल सकता है।
जैसे –
- अहम् + कार = अहंकार
- पन् + चम् = पंचम
- सम् + गम् = संगम
4. यदि 'त्' के बाद कोई स्वर या (ग् ,घ् ,द् ,ध् ,ब् ,भ् ,य् ,र् ,व्) में कोई आए तो 'त्' के स्थान पर 'द्' हो जाता है।
जैसे –
- जगत् + आनन्द = जगदानन्द
- उत् + दाम = उधाम
- उत् + घाटन = उद्घाटन
5. यदि 'त्' या 'द्' के बाद 'च्' या 'श्' आए तो 'त्–द्' के स्थान पर 'च्' और बदलावे 'श्' का 'छ्' हो जाता है।
जैसे –
- उत् + चारण = उच्चारण
- उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
6. यदि 'त्–द्' के बाद 'ल्' रहे तो 'त्–द्', 'ल्' में बदल जाते हैं और 'न्' के बाद 'ल्' रहे तो 'न्' का अनुनासिक के बाद 'ल्' हो जाता है।
जैसे –
- उत् + लास = उल्लास
- महान् + लाभ = महाल्लभ
3. विसर्ग संधि
परिभाषा - स्वर और व्यंजन के मेल से जो विसर्ग उत्पन्न होता है, उसे विसर्ग संधि कहते है।
उदाहरण -
- राजः + मय = राजोमय
- दुः +आत्मा = दुशात्मा
- मनः + रथ = मनोरथ
- लोकः + इष्ट = लोकि
- सः + फल = सफल
इसके कुछ नियम इस प्रकार है-
1. यदि विसर्ग के बाद 'च- छ - श' हो तो विसर्ग का 'श' , ' ट - ठ - ष' हो तो 'ष' और ' त - थ - स ' हो तो 'स' हो जाता है।
जैसे -
- निः + चय = निश्चय
- निः + छल = निश्छल
- निः + सार = निस्सार
- निः + शेष = निश्शेष
- निः + तार = निस्तार
2. यदि विसर्ग के पहले इकार या उकार आये और विसर्ग के बाद का अक्षर क , ख , प, फ हो तो विसर्ग का ष हो जाता है। जैसे -
- निः + कपट = निष्कपट
- निः + फल = निष्फल
- निः + पाप = निष्पाप
- दुः + कर = दुष्कर
3. यदि विसर्ग के पहले 'अ' हो और विसर्ग के बाद क , ख , प, फ हो तो विसर्ग जेसा का तेसा हे रह जाता है।
जैसे -
- प्रातः + काल = प्रातः काल
- पयः + पान = पयः पान
- अधः + पतन = अधः पतन
4. यदि 'इ , उ' के बाद विसर्ग हो और विसर्ग के बाद 'र' आये तो 'इ' का 'ई ' हो जाता है और विसर्ग का लौप हो गता है। जैसे -
- निः + रस = नीरस
- निः + रोग = निरोग
- निः + रव = नीरव
5. यदि विसर्ग के पहले 'अ' या 'आ' को छोड़ कोई दूसरा स्वर आये और विसर्ग के बाद कोई स्वर हो या किसी वर्ग का तृतीय , चतुर्थ और पंचम वर्ण हो या 'य , र ,ल ,व, ह' हो तो विसर्ग के स्थान पर 'र' हो जाता है।
जैसे -
- निः + उपाय = निरुपाय
- निः + गुण = निर्गुण
- निः + जल = निर्जल
- दुः + गन्ध = दुर्गन्ध
- दुः + आत्मा = दुरात्मा
6. यदि विसर्ग के पहले 'अ' आये और विसर्ग के बाद वर्ग का तृतीय , चतुर्थ या पंचम वर्ण आये या 'य , र ,ल , व , ह' रहे तो पहला 'अ' और विसर्ग मिलकर 'ओ ' होता है।
जैसे -
- मनः + रथ = मनोरथ
- मनः + हर = मनोहर
- सरः + ज = सरोज
- सरः + वर = सरोवर
- यशः + दा = यशोदा
7. यदि विसर्ग के आगे - पीछे 'अ' हो तो पहला 'अ' और विसर्ग मिलकर 'ओ' हो जाता है और विसर्ग के बादवाले 'अ' का लोप होता है तथा उसके स्थान पर लुप्ताकर का चिन्ह लगा दिया जाता है।
संधि के 100+ उदाहरण
- अन्याय = अनि + आय
- अत्यधिक = अति + अधिक
- अतएव = अतः + एव
- अत्यंत = अति +अंत
- अब्ज = अप + ज
- अहंकार = अहम् + कार
- आशीर्वाद = आशिः + वाद
- आविष्कार = आविः + कार
- इत्यादि = इति + आदि
- उल्लास = उत् + लास
- उध्दार = उत् + हार
- उन्नत्ति = उत् + नति
- उल्लंघन = उत्+ लंघन
- उच्चारण = उत् + चारण
- उदय = उत् + अय
- उज्ज्वल = उत् + ज्वल
- उद्योग = उत् + योग
- उल्लेख = उत् + लेख
- एकेक = एक + एक
- तल्लीन = तत + लीन
- तथेव = तथा + एव
- तथापि = तथा + अपि
- तपोवन = तप + वन
- देवेन्द्र = देव + इंद्र
- दिज्ज्ग = दिक् + गज
- दिगम्बर = दिक् + अम्बर
- देवर्षी = देव + ऋषि
- नमस्कार = नम + कार
- नयन = ने + अन
- नायक = ने + यक
- स्वागत = सु + आगत
- सज्जन = सत + जन
- संतोष = सम + तोष
- संसार = सम + सार
- सदाचार = सत + अचार
- सतीश = सती + ईश्
- सर्वोतम = सर्व + उत्तम
- सदगति = सत + गति
- अत्याचार = अति + अचार
- अन्यान्य = अन्य + अन्य
- नाविक = नो + इक
- निश्छल = निः + छल
- निश्चय = निः + चय
- निर्मल = निः + मल
- परमेश्वर = परम + ईश्वर
- पावन = पौ + अन
- पावक = पौ + अक
- प्रत्येक = प्रति + एक
- प्रत्युतर = प्रति + उत्तर
- पवन = पो + अन
- परोपकार = पर + उपकार
- पवित्र = पो + इत्र
- परीक्षा = परि + ईक्षा
- पीताम्बर = पीत + अम्बर
- परंतु = परम + तू
- प्रातःकाल = प्रातः + काल
- भवन = भो + अन
- मनोहर = मनः + हर
- महाशय = महा + आशय
- महोत्सव = महा + उत्सव
- मनोज = मनः + ज
- महेश = महा + ईश
- मनोरथ = मनः + रथ
- यधपि = यदि + अपि
- यशोदा = यश + दा
- यथेष्ट = यथा + इष्ट
- रामायण = राम + अयन
- रमेश = रमा + ईश
- विद्यालय = विद्या + आलय
- सुरेन्द्र = सुर + इन्द्र
- सच्चरित्र = सत + चरित्र
- सदेव = सदा + एव
- संधि = सम + धि
- सूर्योदय = सूर्य + उदय
- सरोज = सरः + ज
- सरोवर = सरः + वर
- षड्दर्शन = षट् + दर्शन
- हिमालय = हिम + आलय
- संगम = सम् + गम
- किंतु = किम् + तु
- भवेंद्र = भू + इंद्र
- नीचार = नीच + अचर
- शंकरेश्वर = शिव + इश्वर
- प्राध्यापक = प्र + अध्यापक
- स्वार्थ = सु + अर्थ
- महर्षि = महा + ऋषि
- विज्ञान = विद् + ज्ञान
- जगद्गुरु = जगद + गुरु
- लोकनायक = लोक + नायक
- सत्संग = सत् + संग
- जगद्पति = जगत् + पति
- पवित्रात्मा = पवित्र + आत्मा
- अद्लोक = अद् + लोक
- लक्ष्मी = लक्ष + मी
- जीवात्मा = जीव + आत्मा
- महादेव = महा + देव
- लोकनाथ = लोक + नाथ
- नीतिशास्त्र = निति + शास्त्र
- आत्मबल = आत्मा + बल
- सत्यनारायण = सत्य + नारायण
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